Monday, April 26, 2010

वर्त्तमान महिमा (दोहावली)

वर्त्तमान महिमा (दोहावली) 
द्वारा - त्रिभुवन 'चैतन्य निधि '




क्षण क्षण में है वर्त्तमान
    जो अभी यहीं है अभी अभी |
बीता भूत गया बीता है ,
    जो आता है नही कभी ||१||

भविष्य कल है आने वाला ,
    कल्पना कि ओढ़ दुशाला |
जो कल कल कह कर आता ,
    वर्त्तमान क्षण ही बन जाता||२||

वर्त्तमान की इतनी महिमा ,
    क्षण क्षण के जीने में है |
जीवन का तो समस्त रस ही ,
    अभी अभी पीने में है ||३||

जीवन क्षण भंगुर है जिसका ,
    प्रत्येक क्षण है मूल्यवान |
जिसे न भूत भविष्य दिलाये ,
    दिला सकेगा वर्त्तमान ||४||

कल कल में क्यों बहा रहे हो ,
    जीवन सरिता का अमूल्य जल |
वर्त्तमान में क्यों न भिगोते ,
    क्षण क्षण का अपना आँचल ||५||

आती जाती साँसों पर चढ़ ,
    जीवन दूर चला जाता |
आती मौत करीब और
    कल कल में जीवन गल जाता ||६||

जीवन का आनंद यही है ,
    अभी अभी और यही यही |
कल कल तू अब छोड़ रे मनुआ ,
    जीओ यह क्षण अभी यही ||७||

अभी अभी और यही यही
    की मदिरा को छक कर पीओ |
जीवन का आनंद समूचा
    वर्तमान का क्षण क्षण जिओ ||८||

क्षण क्षण को जिओगे तेरा
    होश बनेगा अति आनंद |
निर्मल बन जाएगा मन
    दिलवाएगा परमानन्द ||९||

कल कल में तो चाहे कुछ हो ,
    जीवन तो है कहीं नही |
जागृति में ही जीवन दर्शन ,
    परमानन्द ही वहीँ कहीं ||१०||

वर्त्तमान को सदा सम्हालो ,
    सुधरेगा फिर भूत भविष्य |
जीवन भर जाये अमृत से ,
    घुल जायेगा समस्त विष ||११||

द्रष्टा बन जीओ पल पल को ,
    मिट जाये मन का कर्तापन |
सुख दुःख मोह मिटेगा क्षण में ,
    जब जिओगे तू साक्षी बन ||१२||

होश बढेगा जभी तुम्हारा
    वर्त्तमान में जीना आये |
बूंद बूंद जब होश बढे तो ,
    तन मन में चैतन्य समाये ||१३||

चैतन्य हमारी है सतता जो
    परमात्मा को दिलवाने में |
जो सधता है विपश्यना से ,
    मन को अमन बनाने में ||१४||

जीवन जीवंत हो उठेगा ,
    जब वर्त्तमान जीओ भरपूर |
पूर्ण होश में जाग उठेगा
    कण कण का यौवन सम्पूर्ण ||१५||

वर्त्तमान ही सदा सिखाता
    करो सामना सन्मुख होकर कठिनाई से |
मत तू करो पलायन
    जम कर युद्ध करो तू अपनी विपदायी से ||१६||

वर्तमान में पूरी शक्ति लगा दो
    पा जाने को तू सत्य महान |
पूर्ण सफलता पाने को तुम
    साध लो अपना वर्त्तमान ||१७||

द्रष्टा बन कर तू देखो
    वर्त्तमान के क्षण प्रतिक्षण |
बिना प्रतिक्रिया दर्शन से ही
    नाच उठे समता के कण कण ||१८||

दुःख का कारण मन है जो है
    राग और द्वेष जगाने वाला ?
वर्त्तमान में रह कर निर्मल मन है ,
    परमानन्द दिलाने वाला ||१९||

हर काम तू करो होश में ,
    वर्तमान में सहज सरल |
भूत भविष्य को तज देना है ,
    जो लाता है सतत खलल ||२०||


दो शब्द -  
होश के बारे में महान अध्यात्मिक गुरु ओशो ने अपने प्रवचनों में अधिकाधिक बार इसका उल्लेख किया है . और उनका यह सन्देश है कि अगर मनुष्य पूर्ण रूप से वर्त्तमान में रहना सिख जाए तो उसके लिए मोक्ष प्राप्त करना बहुत आसान है . आत्मा का महा चैतन्य रूप होश में पूरी तरह से परिलक्षित होता है . इसलिए यदि मानव हर काम होश में करे , आने वाले हर क्षण में अपना पूरा चैतन्य प्रदर्शित करे (होश के रूप में ) तो उसके जीवन से अंधकार मिट जायेगा और पूर्ण जागृति का सूर्य उदित होगा . आज आदमी हर समय बेहोशी में रह कर अपना कार्य कर रहा है , इसलिए अपनी आत्मा को प्राप्त नही कर पा रहा है .

वर्त्तमान में न रह कर आने वाला कल या बीते हुए कल में रह कर वह अपनी जीवन की जीवन्तता खो दे रहा है , जिसमे जीवन का पूरा आनंद और ख़ुशी नही प्राप्त कर पा रहा है (आनंद और ख़ुशी दो अलग वस्तुए है ) . आदमी जो भी कार्य करे , पूरी तरह से जागरूक हो कर होश में करे इससे उसका काम उत्कृष्ट होगा और उसे जीवन के क्षण क्षण का आनंद प्राप्त होगा . इस क्षण में यदि पूरी तरह से होश है तो अगला क्षण भी पूरी तरह से होश में बीतेगा . क्षण क्षण में होश बनाये रखने से वर्त्तमान के साथ भविष भी सुधर जाएगा और आदमी पूर्णतया सफल हो कर अपने जीवन को एक पुष्प कि भांति खिला , खुला और अहो भाग्य से भरपूर महसूस करेगा .

ओशो की एक ध्यान विधि यह भी है कि जो भी करो जैसे उठाना बैठना , खाना पीना , सोना बातचीत करना - पूरी तरह से होश में करे , कहने का मतलब यह है कि उस समय आपका मन पिछली बातों या आने वाली बातो के बारे में मनन न करे , इसप्रकार जो हर कार्य होश में करते हुए ध्यान विधि को साध ले , उसका सामाजिक तथा अध्यात्मिक जीवन पूरी तरह से सुधर जायेगा और वह आज-कल की तनावपूर्ण जिंदगी से पूरी तरह से मुक्त हो पायेगा . उसके लिए जीवन भार स्वरुप न बनकर आनंद से भरा एक सुगन्धित पुष्पों का गुलदस्ता हो जायेगा .

डॉ. त्रिभवन नाथ त्रिपाठी (२६ - ०४ - २०१० ) बेंगलुरु |

संपादक की कलम से - पापा ने एक दोहावली लिखी और शायद एक दो बार खुद ही पढ़ कर डायरी के ही भेंट चढ़ा दिया. मुझसे रह नही गया , शायद मैं इतनी कविता लिख पता तो सारे संसार में हल्ला मचा देता . हाथ लगी डायरी तो उसे इस BLOG पर लोड करने लगा  . डॉक्टर है पिताजी - कहा जाता है डॉक्टर कि HANDWRITING , मेडिकल शॉप वाले ही समझ पाते है . मेरी क्या मजाल , कुछ एक शब्द समझ नही पाया . उनसे पूछना पड़ा , मेरा राज खुल गया .  
जब दोहावली लिख ली तो मैंने आग्रह किया दो चार शब्द इसके बारे में भी बोल दे . तो ऐसे लिखा गया यह पोस्ट . आप COMMENT दें , मैं पिताजी को  फारवर्ड कर दुंगा . 
अब मैंने तय किया है , पिताजी कि कलम से निकले मोती REGULAR पोस्ट करता रहूँगा .

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी : हिंदी का विकास कैसे हो ?

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी : हिंदी का विकास कैसे हो ? 

आखिर हिंदी का विकास कैसे हो ? हाल ही में सुन रहा था कि भारत में हिंदी को भारतीय भाषाओ में कोई विशेष दर्ज़ा नहीं मिला है , its just another language, ठीक है भाई, मानली आपकी बात .
हिंदी भारत में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा हैं , साथ में हिंदी दुनिया में बोली जाने वाली 2nd or 3rd largest language हैं (उर्दू को जोड़कर ). यह आंकड़े काफी है इसे yet another language की श्रेड़ी से अलग करने के लिए . मैं कही से भी यह नहीं prove करना चाहता की हिन्दोस्तान की अन्य भाषाए तुच्छ  है और हिंदी महान . no doubt, Hindi is youngest of all Indian languages, और पूरे विश्व कि अन्य भाषाओ में भी यह सबसे young हैं . शुद्ध रूप में यह मात्र कुछ २००-३०० वर्ष ही पुरानी हैं . लेकिन यह अन्य भाषाओ से अलग हैं , इतने कम समय में यह ज्यादा popular हो गयी . जहाँ पर हिंदी सबसे कनिष्ठ है वही तमिल को विश्व के सबसे पुराने लिखित ग्रामर होने का सम्मान मिलता है , संस्कृत से भी पुराना , लैटिन - ग्रीक से भी पुराना . इसी तरह अन्य भारतीय भाषाए भी एक से बढ़कर एक हैं , इसका मुझे फक्र है . गौर से देखा जाए तो भारत बोलने में बहुत विकसित देश है . अरे भाई ! इतनी भषाए जो बोली जाती है . लगता है हमारे पूर्वजो ने तय कर लिया था - हम तो अपनी अपनी बोलेंगे - और सबने इजाद कर डाली नयी नयी भाषाए . भारत में यूँ तो प्रमुख रूप से १७ भाषाए है , लेकिन कुल बोली जाने वाली भाषाओँ कि संख्या ३००० से ज्यादा है . हिंदी इन सबमे प्रमुख है . कायदे से इसे राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा मिला था , लेकिन शायद यह सिर्फ मुंह जबानी ही रह गया . संविधान में कोई ENTRY नही की गयी . हाल ही में एक मुकदमे की कार्यवाई के दौरान  जज़ ने सरकारी वकील से पूछा कि हिंदी को क्या राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा मिला है तो सरकारी वकील साहब पशोपेश में पड गए . उनके पास कोई WRITTEN कानून नही है जिसमे यह लिखा गया हो . 

बहरहाल कुछ भी हो , नाम के लिए ही सही लेकिन हिंदी राष्ट्र भाषा तो है ही . मुझे संदेह होता है कि हिंदी का भविष्य क्या है ? अपनी जान निकालू schedule से कुछ पल निकाल हिंदी पढता लिखता हूँ . सुकून मिलता है . शायद मैंने miss कर दिया और अब सेना का सैनिक तो नही बन सकता , तब चलिए यूँ ही कुछ मातरेवतन की सेवा हो जाती है . बहुत सोचा की हिंदी का विकास कैसे हो , इसका भविष्य क्या हैं , इन सभी विषयों पर अपनी कम अक्ल से मैंने कुछ points निकाले हैं . पेश-ए-ख़िदमत करता हूँ .     

सेकंड लैंगुएज का जाल 
मैं विगत कई वर्षो से south India में हूँ , शायद मैंने कोशिश नहीं की  अन्यथा एक आध साउथ इंडियन language सीख ही लेता , शायद संगत नहीं मिली , या शायद अलसिया गया . बहरहाल, मैंने देखा है कि south के लोग अपनी language के पीछे कितना जान छिड़कते है , सही भी हैं , लेकिन यही ज़ज्बा हिंदी भाषियों में नहीं दिखता . अजीब बात है , है ना ? मैंने गौर से देखा , ज़रा नजदीक जाके . वास्तव में हिंदी , अधिकतर हिंदी भाषियों कि सेकंड language है , उत्तर प्रदेश, बिहार , उत्तरा खंड , झारखंड इन सभी हिंदी के गढों में भोजपुरी , मैथली , पहाड़ी आदि language बोली जाती है . मैं काशी का वासी हूँ , हमारे यहाँ कशिका बोली जाती हैं . हालाँकि नए जमाने के , "so called " शहरी लोग खड़ी बोली ही बोलते हैं , जिसे हिंदी कहेते है . लेकिन यहाँ भी एक twist है , नए ज़माने के यह शहरी , अंगरेजी को अपना ख़ुदा मान चुके हैं , मैं इसका विरोध नही करता , आज हिन्दोस्तान में जितनी ज़रुरत अंगरेजी की है , हिंदी या अन्य किसी भाषा की नही , बिना अंगरेजी जाने हुए आप दो रोटी के लिए भी महंगे हो जायेंगे . Anyways , हिंदी अधिकाँश लोगो के लिए second language ही बनकर रह गयी . और अगर आप ध्यान दें तो spoken hindi से ज्यादा written hindi विलुप्त होती जा रही है . अगर हिंदी सेकेंड लैंगुएज हो गयी तो इसपर जान कौन छिडकेगा .

बॉलीवुड का भला हो ! 
मेरे ख्याल से जितनी हिंदी की सेवा बॉलीवुड ने की है , शायद किसी साहित्य के पंडित ने नही की है !
सुन कर विश्वास नही होता ? बात मानिये . यह सच है . आज गैर हिंदी भाषियों को हिंदी सिखाने का और उन्हें हिंदी सिखने के लिए पटाने का बहुत बड़ा श्रेय बॉलीवुड को जाता है . जैसा मैंने बताया , मैं साउथ इंडिया में कई वर्षों से हूँ , यहाँ बड़े शहरों में कुछ हिंदी बोली जाती है , और जो "कुछ " हिंदी बोली जाती है , सब बॉलीवुड कि बदौलत . साउथ को छोड़े , महाराष्ट्र , बंगाल , उड़ीसा , गुजरात , राजस्थान , नोर्थ ईस्ट आदि राज्यों में भी हिंदी पहुचाने का श्रेय भी बॉलीवुड को ही जाता हैं .
बॉलीवुड की फिल्मे एक नशा हैं , हर भारतीय इसके गिरफ्त में हैं . हीरो हेरोइन , गायक , संगीतकार सब के सब famous . विश्व के लगभग सभी देशो पर राज़ करने वाला hollywood सिनेमा , इंग्लिश बोलने वाले देश भारत में कोई ख़ास मायने नही रखता . हिंदी साहित्य के पंडित जितना दांत पीस ले , उनसे वो न हो पाया जो फिल्मो ने आसानी से कर दिया . फिर कोई संसकारों कि दुहाई दे या कल्चर कि , हिंदी सेवा तो फिल्मो ने खूब की है .
यह कहेना गलत न होगा कि हिंदी का पूरा साहित्य अब यह फिल्मे ही है . चंद लोग ही होंगे जिन्हें फिल्मो से ज्यादा किसी और हिंदी साहित्य का EXPOSURE हो.

हिंगलिश का चक्कर 
करीब १०-१२ साल पहेले इंडिया में सैटेलाइट चैनलों ने पैर पसारना शुरू किया तो आरोप लगा की अंग्रेजी शैली में हिंदी बोलकर कुछ एक इंग्लिश वर्ड यूज़ कर जो खिचड़ी भाषा ये चैनेल परोस रहे है , कही उससे हिंदी का ह्राष तो नही हो रहा . इस खिचड़ी भाषा को नाम दिया गया हिंगलिश . हिंदी प्लस इंग्लिश .
मैं यह नही मानता , मेरी राय में हिंगलिश कोई बुरी चीज़ ना होकर , हिंदी के लिए वरदान है .
जो लोग बिना जाने-बूझे  ऐसा आरोप लगते हैं , शायद हिंदी को समझ नही पाए . हिंदी का जन्म ही अन्य भाषावों के खिचड़ी से हुआ है . शायद हिंदी शब्द भी दूसरी भाषा से आया है . कायदे से हिन्दू , हिंदी , हिंद , हिन्दोस्तान - यह सब फारशी लोगो की इजाद है . उनकी भाषा में सिन्धु नदी को कहा गया हिन्दू नदी , क्योकि due to some limitation of their language वो "स " को "ह " पढ़ते है . वोही सिन्धु नदी , indus हो गया यूरोपे में (again due to some limitation of language ). और इस प्रकार भारत का नाम हो गया - INDIA  . जिस भाषा का प्रादुर्भाव ही दूसरी भाषा के साथ हो उसमे इंग्लिश के चंद शब्द जुड़ जाने से क्या LOSS .
language के development के लिए this is important to allow words of other languages. कोई बुराई नही है इसमें . नए शब्दों के जुड़ने से LANGUAGE को मजबूती ही मिलेगी . अगर हम हिंदी का जान - बूझ कर इतना क्लिष्ठ बना देंगे तो शायद COMFORT OF SPEAKING चला जायेगा . अगर आपको हृषिकेश मुखर्जी कि फिल्म चुपके चुपके याद हो तो सोचिये ऐसी हिंदी का क्या लाभ जो समझ में ही न आवे .
मैं साइंस का विद्यार्थी रहा हूँ और मैंने उसे हिंदी मीडियम में पढ़ा है , ऐसे ऐसे शब्द होते थे कि हालत ख़राब हो जाती थी याद करने में . बस इतना ही सुकून था कि आप इंग्लिश में लिख सकते है , बिना कोई नुकसान के .
एक जमाना था जब हिंदी के विद्वान हर एक TERM को हिंदी में ट्रांसलेट किया करते थे . TV को दूरदर्शन , रेडियो को आकाशवाड़ी , टेलीफोन को दूरवाड़ी  और न जाने क्या क्या , पर अब यह ज़ज्बा नही रहा . INTERNET आया , मोबाईल आया , किसी ने कोई नाम नही रक्खा . यह अच्छा है , इससे आसानी होती है .
ऐसा कहा जा सकता है हिंगलिश ने हिंदी को ज्यादा VERSATILE बनाया . ज्यादा ACCEPTABLE बनाया .

अगले पीढ़ी के लिए सुझाव
हमें यह तो मालूम है कि आज भारत में शिक्षा और JOB दोनों ही क्षेत्रो में इंग्लिश का बोलबाला है . यह कुछ हद तक सही भी है . इंग्लिश एक वैश्विक भाषा के रूप में जानी जाती है . ATLEAST जिन देशो का पाला हमसें पड़ता है उनमें इंग्लिश चलती है . भारत में भी अनेको भाषाएँ बोली जाती हैं , इसलिए पूरी भारतीय जनता हिंदी जाने, यह जरूरी नही . इसलिए यह जरूरी हो जाता है की हम इंग्लिश को अच्छी तरह जाने और समझे .
इन सब को ध्यान में रख के हम आने वाली पीढ़ी को हिंदी के नाम पर backward तो नही बना सकते . हाँ यह ध्यान रहे कि उन्हें हिंदी जरूर सिखाया जाए . अनेक भाषावों का ज्ञान कोई बुरी बात नही . ऐसा शोध से पता चला है कि MULTILINGUAL ज्यादा उम्र तक अपनी दिमाग को मजबूत रखते है . उनके ओल्ड एज में मेमोरी रिलेटेड इसुज़ नही होती . तो अगर अपने बच्चो को आप हिंदी में पारंगत बनाते है तो ये उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है .

सार
पिछले कुछ वर्षो में हिंदी का उत्थान हुआ है . सेटेलाईट चनेलों , बॉलीवुड फिल्मो ने इसे NOT SO COOL से COOL ! स्टेटस में ला दिया . मुझे याद है १९८०-१९९० मे TV पर इंग्लिश ऐड आते थे , अब तो जब सुनता हूँ साउथ इंडियन शहरों में FM पर हिंदी में ऐड आते है . हिंदी को ज्यादा बिंदास और मस्त LANGUAGE माना जाता है .
मुझे इस बात की ख़ुशी है कि ब्लॉग स्पेस में भी हिंदी ने खूब धूम मचाई है .
हिंदी के लिए यह ही अच्छा है की यह CO EXISTENCE की नीति पर चले . ज्यादा EXTREME पर जाने पे LOSS ही होगा .

आशा है यह पोस्ट आपको अच्छा लगा . त्रुटियों के लिए क्षमा कीजियेगा , TRANSLITERATION है तो बहुत अच्छा TOOL पर इससे लिखना भी बहुत सरल नही . पढ़ने के लिए धन्यवाद . जाते जाते एक COMMENT मार जाइएगा , सनद रहेगा .

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हिंदी के पोर्टल एक्का दुक्का ही है . आप को बहुत खोजना पड़ेगा  तो कही जा के एक पोर्टल मिलेगा . GOOGLE ने बहुत कोशिश की है हिंदी सर्च को HIT करानेकी  , लेकिन मुश्किल है , हिंदी सर्च इतना famous नही हो सका है . कभी किसी ने , JUST TO CHECK , यूज़ करलिया , बस .

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