वर्त्तमान महिमा (दोहावली)
द्वारा - त्रिभुवन 'चैतन्य निधि ' क्षण क्षण में है वर्त्तमान
जो अभी यहीं है अभी अभी |
बीता भूत गया बीता है ,
जो आता है नही कभी ||१||
भविष्य कल है आने वाला ,
कल्पना कि ओढ़ दुशाला |
जो कल कल कह कर आता ,
वर्त्तमान क्षण ही बन जाता||२||
वर्त्तमान की इतनी महिमा ,
क्षण क्षण के जीने में है |
जीवन का तो समस्त रस ही ,
अभी अभी पीने में है ||३||
जीवन क्षण भंगुर है जिसका ,
प्रत्येक क्षण है मूल्यवान |
जिसे न भूत भविष्य दिलाये ,
दिला सकेगा वर्त्तमान ||४||
कल कल में क्यों बहा रहे हो ,
जीवन सरिता का अमूल्य जल |
वर्त्तमान में क्यों न भिगोते ,
क्षण क्षण का अपना आँचल ||५||
आती जाती साँसों पर चढ़ ,
जीवन दूर चला जाता |
आती मौत करीब और
कल कल में जीवन गल जाता ||६||
जीवन का आनंद यही है ,
अभी अभी और यही यही |
कल कल तू अब छोड़ रे मनुआ ,
जीओ यह क्षण अभी यही ||७||
अभी अभी और यही यही
की मदिरा को छक कर पीओ |
जीवन का आनंद समूचा
वर्तमान का क्षण क्षण जिओ ||८||
क्षण क्षण को जिओगे तेरा
होश बनेगा अति आनंद |
निर्मल बन जाएगा मन
दिलवाएगा परमानन्द ||९||
कल कल में तो चाहे कुछ हो ,
जीवन तो है कहीं नही |
जागृति में ही जीवन दर्शन ,
परमानन्द ही वहीँ कहीं ||१०||
वर्त्तमान को सदा सम्हालो ,
सुधरेगा फिर भूत भविष्य |
जीवन भर जाये अमृत से ,
घुल जायेगा समस्त विष ||११||
द्रष्टा बन जीओ पल पल को ,
मिट जाये मन का कर्तापन |
सुख दुःख मोह मिटेगा क्षण में ,
जब जिओगे तू साक्षी बन ||१२||
होश बढेगा जभी तुम्हारा
वर्त्तमान में जीना आये |
बूंद बूंद जब होश बढे तो ,
तन मन में चैतन्य समाये ||१३||
चैतन्य हमारी है सतता जो
परमात्मा को दिलवाने में |
जो सधता है विपश्यना से ,
मन को अमन बनाने में ||१४||
जीवन जीवंत हो उठेगा ,
जब वर्त्तमान जीओ भरपूर |
पूर्ण होश में जाग उठेगा
कण कण का यौवन सम्पूर्ण ||१५||
वर्त्तमान ही सदा सिखाता
करो सामना सन्मुख होकर कठिनाई से |
मत तू करो पलायन
जम कर युद्ध करो तू अपनी विपदायी से ||१६||
वर्तमान में पूरी शक्ति लगा दो
पा जाने को तू सत्य महान |
पूर्ण सफलता पाने को तुम
साध लो अपना वर्त्तमान ||१७||
द्रष्टा बन कर तू देखो
वर्त्तमान के क्षण प्रतिक्षण |
बिना प्रतिक्रिया दर्शन से ही
नाच उठे समता के कण कण ||१८||
दुःख का कारण मन है जो है
राग और द्वेष जगाने वाला ?
वर्त्तमान में रह कर निर्मल मन है ,
परमानन्द दिलाने वाला ||१९||
हर काम तू करो होश में ,
वर्तमान में सहज सरल |
भूत भविष्य को तज देना है ,
जो लाता है सतत खलल ||२०||
दो शब्द -
होश के बारे में महान अध्यात्मिक गुरु ओशो ने अपने प्रवचनों में अधिकाधिक बार इसका उल्लेख किया है . और उनका यह सन्देश है कि अगर मनुष्य पूर्ण रूप से वर्त्तमान में रहना सिख जाए तो उसके लिए मोक्ष प्राप्त करना बहुत आसान है . आत्मा का महा चैतन्य रूप होश में पूरी तरह से परिलक्षित होता है . इसलिए यदि मानव हर काम होश में करे , आने वाले हर क्षण में अपना पूरा चैतन्य प्रदर्शित करे (होश के रूप में ) तो उसके जीवन से अंधकार मिट जायेगा और पूर्ण जागृति का सूर्य उदित होगा . आज आदमी हर समय बेहोशी में रह कर अपना कार्य कर रहा है , इसलिए अपनी आत्मा को प्राप्त नही कर पा रहा है .
वर्त्तमान में न रह कर आने वाला कल या बीते हुए कल में रह कर वह अपनी जीवन की जीवन्तता खो दे रहा है , जिसमे जीवन का पूरा आनंद और ख़ुशी नही प्राप्त कर पा रहा है (आनंद और ख़ुशी दो अलग वस्तुए है ) . आदमी जो भी कार्य करे , पूरी तरह से जागरूक हो कर होश में करे इससे उसका काम उत्कृष्ट होगा और उसे जीवन के क्षण क्षण का आनंद प्राप्त होगा . इस क्षण में यदि पूरी तरह से होश है तो अगला क्षण भी पूरी तरह से होश में बीतेगा . क्षण क्षण में होश बनाये रखने से वर्त्तमान के साथ भविष भी सुधर जाएगा और आदमी पूर्णतया सफल हो कर अपने जीवन को एक पुष्प कि भांति खिला , खुला और अहो भाग्य से भरपूर महसूस करेगा .
ओशो की एक ध्यान विधि यह भी है कि जो भी करो जैसे उठाना बैठना , खाना पीना , सोना बातचीत करना - पूरी तरह से होश में करे , कहने का मतलब यह है कि उस समय आपका मन पिछली बातों या आने वाली बातो के बारे में मनन न करे , इसप्रकार जो हर कार्य होश में करते हुए ध्यान विधि को साध ले , उसका सामाजिक तथा अध्यात्मिक जीवन पूरी तरह से सुधर जायेगा और वह आज-कल की तनावपूर्ण जिंदगी से पूरी तरह से मुक्त हो पायेगा . उसके लिए जीवन भार स्वरुप न बनकर आनंद से भरा एक सुगन्धित पुष्पों का गुलदस्ता हो जायेगा .
डॉ. त्रिभवन नाथ त्रिपाठी (२६ - ०४ - २०१० ) बेंगलुरु |
संपादक की कलम से - पापा ने एक दोहावली लिखी और शायद एक दो बार खुद ही पढ़ कर डायरी के ही भेंट चढ़ा दिया. मुझसे रह नही गया , शायद मैं इतनी कविता लिख पता तो सारे संसार में हल्ला मचा देता . हाथ लगी डायरी तो उसे इस BLOG पर लोड करने लगा . डॉक्टर है पिताजी - कहा जाता है डॉक्टर कि HANDWRITING , मेडिकल शॉप वाले ही समझ पाते है . मेरी क्या मजाल , कुछ एक शब्द समझ नही पाया . उनसे पूछना पड़ा , मेरा राज खुल गया .
जब दोहावली लिख ली तो मैंने आग्रह किया दो चार शब्द इसके बारे में भी बोल दे . तो ऐसे लिखा गया यह पोस्ट . आप COMMENT दें , मैं पिताजी को फारवर्ड कर दुंगा .
अब मैंने तय किया है , पिताजी कि कलम से निकले मोती REGULAR पोस्ट करता रहूँगा .