Monday, May 3, 2010

चराग़-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसींन रात थी . Charag-o-aftab gum Badi Haasin Raat thi

जगजीत सिंह द्वारा गाई एक ग़ज़ल सुन रहा था , सोचा SHARE करते है .


चराग़-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसींन रात थी . 
श़बाब की नक़ाब गुम, बड़ी हसींन रात थी . 

मुझे पिला रहे थे वो की खुद ही शम्मा बुझ गयी 
गिलास गुम, शराब गुम , बड़ी हसींन रात थी .  

लिखा था जिस किताब में कि इश्क तो हराम है.
हुयी वोही किताब गुम , बड़ी हसींन रात थी .

लबो से लब जो मिल गए , लबो से लब ही सिल गए .
सवाल गुम , जबाब गुम , बड़ी हसींन रात थी .


शायर - सुदर्शन फ़ाकिर

Monday, April 26, 2010

वर्त्तमान महिमा (दोहावली)

वर्त्तमान महिमा (दोहावली) 
द्वारा - त्रिभुवन 'चैतन्य निधि '




क्षण क्षण में है वर्त्तमान
    जो अभी यहीं है अभी अभी |
बीता भूत गया बीता है ,
    जो आता है नही कभी ||१||

भविष्य कल है आने वाला ,
    कल्पना कि ओढ़ दुशाला |
जो कल कल कह कर आता ,
    वर्त्तमान क्षण ही बन जाता||२||

वर्त्तमान की इतनी महिमा ,
    क्षण क्षण के जीने में है |
जीवन का तो समस्त रस ही ,
    अभी अभी पीने में है ||३||

जीवन क्षण भंगुर है जिसका ,
    प्रत्येक क्षण है मूल्यवान |
जिसे न भूत भविष्य दिलाये ,
    दिला सकेगा वर्त्तमान ||४||

कल कल में क्यों बहा रहे हो ,
    जीवन सरिता का अमूल्य जल |
वर्त्तमान में क्यों न भिगोते ,
    क्षण क्षण का अपना आँचल ||५||

आती जाती साँसों पर चढ़ ,
    जीवन दूर चला जाता |
आती मौत करीब और
    कल कल में जीवन गल जाता ||६||

जीवन का आनंद यही है ,
    अभी अभी और यही यही |
कल कल तू अब छोड़ रे मनुआ ,
    जीओ यह क्षण अभी यही ||७||

अभी अभी और यही यही
    की मदिरा को छक कर पीओ |
जीवन का आनंद समूचा
    वर्तमान का क्षण क्षण जिओ ||८||

क्षण क्षण को जिओगे तेरा
    होश बनेगा अति आनंद |
निर्मल बन जाएगा मन
    दिलवाएगा परमानन्द ||९||

कल कल में तो चाहे कुछ हो ,
    जीवन तो है कहीं नही |
जागृति में ही जीवन दर्शन ,
    परमानन्द ही वहीँ कहीं ||१०||

वर्त्तमान को सदा सम्हालो ,
    सुधरेगा फिर भूत भविष्य |
जीवन भर जाये अमृत से ,
    घुल जायेगा समस्त विष ||११||

द्रष्टा बन जीओ पल पल को ,
    मिट जाये मन का कर्तापन |
सुख दुःख मोह मिटेगा क्षण में ,
    जब जिओगे तू साक्षी बन ||१२||

होश बढेगा जभी तुम्हारा
    वर्त्तमान में जीना आये |
बूंद बूंद जब होश बढे तो ,
    तन मन में चैतन्य समाये ||१३||

चैतन्य हमारी है सतता जो
    परमात्मा को दिलवाने में |
जो सधता है विपश्यना से ,
    मन को अमन बनाने में ||१४||

जीवन जीवंत हो उठेगा ,
    जब वर्त्तमान जीओ भरपूर |
पूर्ण होश में जाग उठेगा
    कण कण का यौवन सम्पूर्ण ||१५||

वर्त्तमान ही सदा सिखाता
    करो सामना सन्मुख होकर कठिनाई से |
मत तू करो पलायन
    जम कर युद्ध करो तू अपनी विपदायी से ||१६||

वर्तमान में पूरी शक्ति लगा दो
    पा जाने को तू सत्य महान |
पूर्ण सफलता पाने को तुम
    साध लो अपना वर्त्तमान ||१७||

द्रष्टा बन कर तू देखो
    वर्त्तमान के क्षण प्रतिक्षण |
बिना प्रतिक्रिया दर्शन से ही
    नाच उठे समता के कण कण ||१८||

दुःख का कारण मन है जो है
    राग और द्वेष जगाने वाला ?
वर्त्तमान में रह कर निर्मल मन है ,
    परमानन्द दिलाने वाला ||१९||

हर काम तू करो होश में ,
    वर्तमान में सहज सरल |
भूत भविष्य को तज देना है ,
    जो लाता है सतत खलल ||२०||


दो शब्द -  
होश के बारे में महान अध्यात्मिक गुरु ओशो ने अपने प्रवचनों में अधिकाधिक बार इसका उल्लेख किया है . और उनका यह सन्देश है कि अगर मनुष्य पूर्ण रूप से वर्त्तमान में रहना सिख जाए तो उसके लिए मोक्ष प्राप्त करना बहुत आसान है . आत्मा का महा चैतन्य रूप होश में पूरी तरह से परिलक्षित होता है . इसलिए यदि मानव हर काम होश में करे , आने वाले हर क्षण में अपना पूरा चैतन्य प्रदर्शित करे (होश के रूप में ) तो उसके जीवन से अंधकार मिट जायेगा और पूर्ण जागृति का सूर्य उदित होगा . आज आदमी हर समय बेहोशी में रह कर अपना कार्य कर रहा है , इसलिए अपनी आत्मा को प्राप्त नही कर पा रहा है .

वर्त्तमान में न रह कर आने वाला कल या बीते हुए कल में रह कर वह अपनी जीवन की जीवन्तता खो दे रहा है , जिसमे जीवन का पूरा आनंद और ख़ुशी नही प्राप्त कर पा रहा है (आनंद और ख़ुशी दो अलग वस्तुए है ) . आदमी जो भी कार्य करे , पूरी तरह से जागरूक हो कर होश में करे इससे उसका काम उत्कृष्ट होगा और उसे जीवन के क्षण क्षण का आनंद प्राप्त होगा . इस क्षण में यदि पूरी तरह से होश है तो अगला क्षण भी पूरी तरह से होश में बीतेगा . क्षण क्षण में होश बनाये रखने से वर्त्तमान के साथ भविष भी सुधर जाएगा और आदमी पूर्णतया सफल हो कर अपने जीवन को एक पुष्प कि भांति खिला , खुला और अहो भाग्य से भरपूर महसूस करेगा .

ओशो की एक ध्यान विधि यह भी है कि जो भी करो जैसे उठाना बैठना , खाना पीना , सोना बातचीत करना - पूरी तरह से होश में करे , कहने का मतलब यह है कि उस समय आपका मन पिछली बातों या आने वाली बातो के बारे में मनन न करे , इसप्रकार जो हर कार्य होश में करते हुए ध्यान विधि को साध ले , उसका सामाजिक तथा अध्यात्मिक जीवन पूरी तरह से सुधर जायेगा और वह आज-कल की तनावपूर्ण जिंदगी से पूरी तरह से मुक्त हो पायेगा . उसके लिए जीवन भार स्वरुप न बनकर आनंद से भरा एक सुगन्धित पुष्पों का गुलदस्ता हो जायेगा .

डॉ. त्रिभवन नाथ त्रिपाठी (२६ - ०४ - २०१० ) बेंगलुरु |

संपादक की कलम से - पापा ने एक दोहावली लिखी और शायद एक दो बार खुद ही पढ़ कर डायरी के ही भेंट चढ़ा दिया. मुझसे रह नही गया , शायद मैं इतनी कविता लिख पता तो सारे संसार में हल्ला मचा देता . हाथ लगी डायरी तो उसे इस BLOG पर लोड करने लगा  . डॉक्टर है पिताजी - कहा जाता है डॉक्टर कि HANDWRITING , मेडिकल शॉप वाले ही समझ पाते है . मेरी क्या मजाल , कुछ एक शब्द समझ नही पाया . उनसे पूछना पड़ा , मेरा राज खुल गया .  
जब दोहावली लिख ली तो मैंने आग्रह किया दो चार शब्द इसके बारे में भी बोल दे . तो ऐसे लिखा गया यह पोस्ट . आप COMMENT दें , मैं पिताजी को  फारवर्ड कर दुंगा . 
अब मैंने तय किया है , पिताजी कि कलम से निकले मोती REGULAR पोस्ट करता रहूँगा .

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी : हिंदी का विकास कैसे हो ?

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी : हिंदी का विकास कैसे हो ? 

आखिर हिंदी का विकास कैसे हो ? हाल ही में सुन रहा था कि भारत में हिंदी को भारतीय भाषाओ में कोई विशेष दर्ज़ा नहीं मिला है , its just another language, ठीक है भाई, मानली आपकी बात .
हिंदी भारत में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा हैं , साथ में हिंदी दुनिया में बोली जाने वाली 2nd or 3rd largest language हैं (उर्दू को जोड़कर ). यह आंकड़े काफी है इसे yet another language की श्रेड़ी से अलग करने के लिए . मैं कही से भी यह नहीं prove करना चाहता की हिन्दोस्तान की अन्य भाषाए तुच्छ  है और हिंदी महान . no doubt, Hindi is youngest of all Indian languages, और पूरे विश्व कि अन्य भाषाओ में भी यह सबसे young हैं . शुद्ध रूप में यह मात्र कुछ २००-३०० वर्ष ही पुरानी हैं . लेकिन यह अन्य भाषाओ से अलग हैं , इतने कम समय में यह ज्यादा popular हो गयी . जहाँ पर हिंदी सबसे कनिष्ठ है वही तमिल को विश्व के सबसे पुराने लिखित ग्रामर होने का सम्मान मिलता है , संस्कृत से भी पुराना , लैटिन - ग्रीक से भी पुराना . इसी तरह अन्य भारतीय भाषाए भी एक से बढ़कर एक हैं , इसका मुझे फक्र है . गौर से देखा जाए तो भारत बोलने में बहुत विकसित देश है . अरे भाई ! इतनी भषाए जो बोली जाती है . लगता है हमारे पूर्वजो ने तय कर लिया था - हम तो अपनी अपनी बोलेंगे - और सबने इजाद कर डाली नयी नयी भाषाए . भारत में यूँ तो प्रमुख रूप से १७ भाषाए है , लेकिन कुल बोली जाने वाली भाषाओँ कि संख्या ३००० से ज्यादा है . हिंदी इन सबमे प्रमुख है . कायदे से इसे राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा मिला था , लेकिन शायद यह सिर्फ मुंह जबानी ही रह गया . संविधान में कोई ENTRY नही की गयी . हाल ही में एक मुकदमे की कार्यवाई के दौरान  जज़ ने सरकारी वकील से पूछा कि हिंदी को क्या राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा मिला है तो सरकारी वकील साहब पशोपेश में पड गए . उनके पास कोई WRITTEN कानून नही है जिसमे यह लिखा गया हो . 

बहरहाल कुछ भी हो , नाम के लिए ही सही लेकिन हिंदी राष्ट्र भाषा तो है ही . मुझे संदेह होता है कि हिंदी का भविष्य क्या है ? अपनी जान निकालू schedule से कुछ पल निकाल हिंदी पढता लिखता हूँ . सुकून मिलता है . शायद मैंने miss कर दिया और अब सेना का सैनिक तो नही बन सकता , तब चलिए यूँ ही कुछ मातरेवतन की सेवा हो जाती है . बहुत सोचा की हिंदी का विकास कैसे हो , इसका भविष्य क्या हैं , इन सभी विषयों पर अपनी कम अक्ल से मैंने कुछ points निकाले हैं . पेश-ए-ख़िदमत करता हूँ .     

सेकंड लैंगुएज का जाल 
मैं विगत कई वर्षो से south India में हूँ , शायद मैंने कोशिश नहीं की  अन्यथा एक आध साउथ इंडियन language सीख ही लेता , शायद संगत नहीं मिली , या शायद अलसिया गया . बहरहाल, मैंने देखा है कि south के लोग अपनी language के पीछे कितना जान छिड़कते है , सही भी हैं , लेकिन यही ज़ज्बा हिंदी भाषियों में नहीं दिखता . अजीब बात है , है ना ? मैंने गौर से देखा , ज़रा नजदीक जाके . वास्तव में हिंदी , अधिकतर हिंदी भाषियों कि सेकंड language है , उत्तर प्रदेश, बिहार , उत्तरा खंड , झारखंड इन सभी हिंदी के गढों में भोजपुरी , मैथली , पहाड़ी आदि language बोली जाती है . मैं काशी का वासी हूँ , हमारे यहाँ कशिका बोली जाती हैं . हालाँकि नए जमाने के , "so called " शहरी लोग खड़ी बोली ही बोलते हैं , जिसे हिंदी कहेते है . लेकिन यहाँ भी एक twist है , नए ज़माने के यह शहरी , अंगरेजी को अपना ख़ुदा मान चुके हैं , मैं इसका विरोध नही करता , आज हिन्दोस्तान में जितनी ज़रुरत अंगरेजी की है , हिंदी या अन्य किसी भाषा की नही , बिना अंगरेजी जाने हुए आप दो रोटी के लिए भी महंगे हो जायेंगे . Anyways , हिंदी अधिकाँश लोगो के लिए second language ही बनकर रह गयी . और अगर आप ध्यान दें तो spoken hindi से ज्यादा written hindi विलुप्त होती जा रही है . अगर हिंदी सेकेंड लैंगुएज हो गयी तो इसपर जान कौन छिडकेगा .

बॉलीवुड का भला हो ! 
मेरे ख्याल से जितनी हिंदी की सेवा बॉलीवुड ने की है , शायद किसी साहित्य के पंडित ने नही की है !
सुन कर विश्वास नही होता ? बात मानिये . यह सच है . आज गैर हिंदी भाषियों को हिंदी सिखाने का और उन्हें हिंदी सिखने के लिए पटाने का बहुत बड़ा श्रेय बॉलीवुड को जाता है . जैसा मैंने बताया , मैं साउथ इंडिया में कई वर्षों से हूँ , यहाँ बड़े शहरों में कुछ हिंदी बोली जाती है , और जो "कुछ " हिंदी बोली जाती है , सब बॉलीवुड कि बदौलत . साउथ को छोड़े , महाराष्ट्र , बंगाल , उड़ीसा , गुजरात , राजस्थान , नोर्थ ईस्ट आदि राज्यों में भी हिंदी पहुचाने का श्रेय भी बॉलीवुड को ही जाता हैं .
बॉलीवुड की फिल्मे एक नशा हैं , हर भारतीय इसके गिरफ्त में हैं . हीरो हेरोइन , गायक , संगीतकार सब के सब famous . विश्व के लगभग सभी देशो पर राज़ करने वाला hollywood सिनेमा , इंग्लिश बोलने वाले देश भारत में कोई ख़ास मायने नही रखता . हिंदी साहित्य के पंडित जितना दांत पीस ले , उनसे वो न हो पाया जो फिल्मो ने आसानी से कर दिया . फिर कोई संसकारों कि दुहाई दे या कल्चर कि , हिंदी सेवा तो फिल्मो ने खूब की है .
यह कहेना गलत न होगा कि हिंदी का पूरा साहित्य अब यह फिल्मे ही है . चंद लोग ही होंगे जिन्हें फिल्मो से ज्यादा किसी और हिंदी साहित्य का EXPOSURE हो.

हिंगलिश का चक्कर 
करीब १०-१२ साल पहेले इंडिया में सैटेलाइट चैनलों ने पैर पसारना शुरू किया तो आरोप लगा की अंग्रेजी शैली में हिंदी बोलकर कुछ एक इंग्लिश वर्ड यूज़ कर जो खिचड़ी भाषा ये चैनेल परोस रहे है , कही उससे हिंदी का ह्राष तो नही हो रहा . इस खिचड़ी भाषा को नाम दिया गया हिंगलिश . हिंदी प्लस इंग्लिश .
मैं यह नही मानता , मेरी राय में हिंगलिश कोई बुरी चीज़ ना होकर , हिंदी के लिए वरदान है .
जो लोग बिना जाने-बूझे  ऐसा आरोप लगते हैं , शायद हिंदी को समझ नही पाए . हिंदी का जन्म ही अन्य भाषावों के खिचड़ी से हुआ है . शायद हिंदी शब्द भी दूसरी भाषा से आया है . कायदे से हिन्दू , हिंदी , हिंद , हिन्दोस्तान - यह सब फारशी लोगो की इजाद है . उनकी भाषा में सिन्धु नदी को कहा गया हिन्दू नदी , क्योकि due to some limitation of their language वो "स " को "ह " पढ़ते है . वोही सिन्धु नदी , indus हो गया यूरोपे में (again due to some limitation of language ). और इस प्रकार भारत का नाम हो गया - INDIA  . जिस भाषा का प्रादुर्भाव ही दूसरी भाषा के साथ हो उसमे इंग्लिश के चंद शब्द जुड़ जाने से क्या LOSS .
language के development के लिए this is important to allow words of other languages. कोई बुराई नही है इसमें . नए शब्दों के जुड़ने से LANGUAGE को मजबूती ही मिलेगी . अगर हम हिंदी का जान - बूझ कर इतना क्लिष्ठ बना देंगे तो शायद COMFORT OF SPEAKING चला जायेगा . अगर आपको हृषिकेश मुखर्जी कि फिल्म चुपके चुपके याद हो तो सोचिये ऐसी हिंदी का क्या लाभ जो समझ में ही न आवे .
मैं साइंस का विद्यार्थी रहा हूँ और मैंने उसे हिंदी मीडियम में पढ़ा है , ऐसे ऐसे शब्द होते थे कि हालत ख़राब हो जाती थी याद करने में . बस इतना ही सुकून था कि आप इंग्लिश में लिख सकते है , बिना कोई नुकसान के .
एक जमाना था जब हिंदी के विद्वान हर एक TERM को हिंदी में ट्रांसलेट किया करते थे . TV को दूरदर्शन , रेडियो को आकाशवाड़ी , टेलीफोन को दूरवाड़ी  और न जाने क्या क्या , पर अब यह ज़ज्बा नही रहा . INTERNET आया , मोबाईल आया , किसी ने कोई नाम नही रक्खा . यह अच्छा है , इससे आसानी होती है .
ऐसा कहा जा सकता है हिंगलिश ने हिंदी को ज्यादा VERSATILE बनाया . ज्यादा ACCEPTABLE बनाया .

अगले पीढ़ी के लिए सुझाव
हमें यह तो मालूम है कि आज भारत में शिक्षा और JOB दोनों ही क्षेत्रो में इंग्लिश का बोलबाला है . यह कुछ हद तक सही भी है . इंग्लिश एक वैश्विक भाषा के रूप में जानी जाती है . ATLEAST जिन देशो का पाला हमसें पड़ता है उनमें इंग्लिश चलती है . भारत में भी अनेको भाषाएँ बोली जाती हैं , इसलिए पूरी भारतीय जनता हिंदी जाने, यह जरूरी नही . इसलिए यह जरूरी हो जाता है की हम इंग्लिश को अच्छी तरह जाने और समझे .
इन सब को ध्यान में रख के हम आने वाली पीढ़ी को हिंदी के नाम पर backward तो नही बना सकते . हाँ यह ध्यान रहे कि उन्हें हिंदी जरूर सिखाया जाए . अनेक भाषावों का ज्ञान कोई बुरी बात नही . ऐसा शोध से पता चला है कि MULTILINGUAL ज्यादा उम्र तक अपनी दिमाग को मजबूत रखते है . उनके ओल्ड एज में मेमोरी रिलेटेड इसुज़ नही होती . तो अगर अपने बच्चो को आप हिंदी में पारंगत बनाते है तो ये उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है .

सार
पिछले कुछ वर्षो में हिंदी का उत्थान हुआ है . सेटेलाईट चनेलों , बॉलीवुड फिल्मो ने इसे NOT SO COOL से COOL ! स्टेटस में ला दिया . मुझे याद है १९८०-१९९० मे TV पर इंग्लिश ऐड आते थे , अब तो जब सुनता हूँ साउथ इंडियन शहरों में FM पर हिंदी में ऐड आते है . हिंदी को ज्यादा बिंदास और मस्त LANGUAGE माना जाता है .
मुझे इस बात की ख़ुशी है कि ब्लॉग स्पेस में भी हिंदी ने खूब धूम मचाई है .
हिंदी के लिए यह ही अच्छा है की यह CO EXISTENCE की नीति पर चले . ज्यादा EXTREME पर जाने पे LOSS ही होगा .

आशा है यह पोस्ट आपको अच्छा लगा . त्रुटियों के लिए क्षमा कीजियेगा , TRANSLITERATION है तो बहुत अच्छा TOOL पर इससे लिखना भी बहुत सरल नही . पढ़ने के लिए धन्यवाद . जाते जाते एक COMMENT मार जाइएगा , सनद रहेगा .

WEBDUNIA.COM -- बेहतरीन हिंदी पोर्टल

हिंदी के पोर्टल एक्का दुक्का ही है . आप को बहुत खोजना पड़ेगा  तो कही जा के एक पोर्टल मिलेगा . GOOGLE ने बहुत कोशिश की है हिंदी सर्च को HIT करानेकी  , लेकिन मुश्किल है , हिंदी सर्च इतना famous नही हो सका है . कभी किसी ने , JUST TO CHECK , यूज़ करलिया , बस .

मैंने ज़रा खोजा तो मुझे एक पोर्टल मिला WEBDUNIA .COM , यह एक हिंदी अच्छा पोर्टल है . एक नज़र डालिए फिर कहियेगा .

Wednesday, June 18, 2008

Taj Mahal or Shiva Temple

Link : http://mamta.mywebdunia.com/2008/05/27/1211907360000.html

उपरोक्त ब्लॉग में श्री पी एन ओक कि पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace का सहारा लेकर बताया गया है कि कैसे एक शिव मन्दिर आज ताज महल के नाम से जाना जाता है । यह कहना मुश्किल है कि उनके तर्क कितने सत्य है , परन्तु इन सौ से ज्यादा तर्कों को यूँ ही नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता । अवश्य पढ़े ।

Thursday, April 10, 2008

ओशो के मोती - हास्य

महान सन्त ओशो ने यूं ही कुछ समझाने में, कुछ हँसाने में, किस्से कहे और वह बन गए मोती । पर यह चुटकुले नहीं है, यह काफी गहरे हैं , इनको समझने कि कोशिश करे , हँसी के साथ साथ आनंद आएगा ।

गिरहें -- एक पागलखाने में तीन आदमी बंद थे - एक ही कोठारी में; क्योकि एक ही साथ पागल हुए थे और तीनो पुराने साथी भी थे । एक दूसरे को रंग दिया होगा । एक मनोचिकित्सक उनका अध्ययन करने आया था । उसने पागलखाने के डॉक्टर से पूछा कि इसमे नम्बर एक को क्या तकलीफ है ? उसने कहा, यह नम्बर एक , एक रस्सी में लगी गाँठ खोलने का उपाय कर रहा था और खोल नहीं पाया - उसी से पागल हुआ ।
और यह दूसरा क्या कर रहा था ?
वह भी गाँठ खोल रहा था रस्सी में लगी और खोलने में सफल हो गया ,और इसलिए पागल हो गया ।
वह मनोचिकित्सक थोड़ा हैरान हुआ । उसने कहा , और यह तीसरे सज्जन ?
उसने कहा , यह वह सज्जन हैं ,जिन्होंने गाँठ लगाई थी ।

Sunday, April 6, 2008

हिन्दू तीज त्यौहार २००८

जनवरी
13 रविवार लोहरी
14 सोमवार मकर संक्रान्ति
14 सोमवार पोंगल
फरवरी
07 वृहस्पतिवार मौनी अमावश्या
11 सोमवार वसंत पंचमी
मार्च
06 वृहस्पतिवार महाशिवरात्रि
22 शनिवार होली
अप्रैल
06 रविवार विक्रमी संवत प्रारंभ / युगादी / गुडी पड़वा
07 सोमवार नवरात्र प्रारंभ
14 सोमवार राम नवमी
19 शनिवार हनुमान जयंती
जून
13 शुक्रवार गंगा दशेहरा
जुलाई
16 बुद्धवार रथ यात्रा
18 शुक्रवार गुरु पूर्णिमा
अगस्त
16 शनिवार राखी
24 रविवार श्री कृष्ण जन्माष्टमी
सितम्बर
03 बुद्धवार गणेश चतुर्थी
12 शुक्रवार ओणम
29 सोमवार नवरात्र प्रारंभ
अक्टूबर
09 वृहस्पतिवार दशहरा
18 शनिवार करवा चौथ
26 रविवार धनतेरस
28 मंगलवार दीवाली
29 बुद्धवार गोवर्धन पूजा
30 वृहस्पतिवार भाईदूज

कथा संग्रह - ईदगाह - मुंशी प्रेमचंद

रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गॉंव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियॉँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पेदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना, दोपहर के पहले लोटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ो के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध ओर शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवेयां खाऍंगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी ऑंखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर काधन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना खजाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस,-बारह, उसके पास बारह पैसे हैं। मोहनसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनती पैसों में अनगिनती चीजें लाऍंगें— खिलौने, मिठाइयां, बिगुल, गेंद और जाने क्या-क्या।

और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह चार-पॉँच साल का गरीब सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और मॉँ न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता क्या बीमारी है। कहती तो कौन सुनने वाला था? दिल पर जो कुछ बीतती थी, वह दिल में ही सहती थी ओर जब न सहा गया,. तो संसार से विदा हो गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है। उसके अब्बाजान रूपये कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियॉँ लेकर आऍंगे। अम्मीजान अल्लहा मियॉँ के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई हैं, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती हे। हामिद के पॉंव में जूते नहीं हैं, सिर परएक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियॉँ और अम्मीजान नियमतें लेकर आऍंगी, तो वह दिल से अरमान निकाल लेगा। तब देखेगा, मोहसिन, नूरे और सम्मी कहॉँ से उतने पैसे निकालेंगे।
अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन, उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह ईद आती ओर चली जाती! इस अन्धकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं, लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने के क्या मतल? उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आये, हामिद की आनंद-भरी चितबन उसका विध्वसं कर देगी।
हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है—तुम डरना नहीं अम्मॉँ, मै सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना।
अमीना का दिल कचोट रहा है। गॉँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद का बाप अमीना के सिवा और कौन है! उसे केसे अकेले मेले जाने दे? उस भीड़-भाड़ से बच्चा कहीं खो जाए तो क्या हो? नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी। नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर में छाले पड़ जाऍंगे। जूते भी तो नहीं हैं। वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेती, लेकिन यहॉँ सेवैयॉँ कोन पकाएगा? पैसे होते तो लौटते-लोटते सब सामग्री जमा करके चटपट बना लेती। यहॉँ तो घंटों चीजें जमा करते लगेंगे। मॉँगे का ही तो भरोसा ठहरा। उस दिन फहीमन के कपड़े सिले थे। आठ आने पेसे मिले थे। उस उठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गई तो क्या करती? हामिद के लिए कुछ नहीं हे, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बच रहे हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में, पांच अमीना के बटुवें में। यही तो बिसात है और ईद का त्यौहार, अल्ला ही बेड़ा पर लगाए। धोबन और नाइन ओर मेहतरानी और चुड़िहारिन सभी तो आऍंगी। सभी को सेवेयॉँ चाहिए और थोड़ा किसी को ऑंखों नहीं लगता। किस-किस सें मुँह चुरायेगी? और मुँह क्यों चुराए? साल-भर का त्योंहार हैं। जिन्दगी खैरियत से रहें, उनकी तकदीर भी तो उसी के साथ है: बच्चे को खुदा सलामत रखे, यें दिन भी कट जाऍंगे।
गॉँव से मेला चला। ओर बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सबके सब दौड़कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नींचे खड़े होकर साथ वालों का इंतजार करते। यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं? हामिद के पैरो में तो जैसे पर लग गए हैं। वह कभी थक सकता है? शहर का दामन आ गया। सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे हैं। पक्की चारदीवारी बनी हुई है। पेड़ो में आम और लीचियॉँ लगी हुई हैं। कभी-कभी कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर निशान लगाता हे। माली अंदर से गाली देता हुआ निंलता है। लड़के वहाँ से एक फलॉँग पर हैं। खूब हँस रहे हैं। माली को केसा उल्लू बनाया है।
बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीं। यह अदालत है, यह कालेज है, यह क्लब घर है। इतने बड़े कालेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? सब लड़के नहीं हैं जी! बड़े-बड़े आदमी हैं, सच! उनकी बड़ी-बड़ी मूँछे हैं। इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ते जाते हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे ओर क्या करेंगे इतना पढ़कर! हामिद के मदरसे में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हें, बिल्कुल तीन कौड़ी के। रोज मार खाते हैं, काम से जी चुराने वाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे ओर क्या। क्लब-घर में जादू होता है। सुना है, यहॉँ मुर्दो की खोपड़ियां दौड़ती हैं। और बड़े-बड़े तमाशे होते हें, पर किसी कोअंदर नहीं जाने देते। और वहॉँ शाम को साहब लोग खेलते हैं। बड़े-बड़े आदमी खेलते हें, मूँछो-दाढ़ी वाले। और मेमें भी खेलती हैं, सच! हमारी अम्मॉँ को यह दे दो, क्या नाम है, बैट, तो उसे पकड़ ही न सके। घुमाते ही लुढ़क जाऍं।
महमूद ने कहा—हमारी अम्मीजान का तो हाथ कॉँपने लगे, अल्ला कसम।
मोहसिन बोल—चलों, मनों आटा पीस डालती हैं। जरा-सा बैट पकड़ लेगी, तो हाथ कॉँपने लगेंगे! सौकड़ों घड़े पानी रोज निकालती हैं। पॉँच घड़े तो तेरी भैंस पी जाती है। किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े, तो ऑंखों तक अँधेरी आ जाए।
महमूद—लेकिन दौड़तीं तो नहीं, उछल-कूद तो नहीं सकतीं।
मोहसिन—हॉँ, उछल-कूद तो नहीं सकतीं; लेकिन उस दिन मेरी गाय खुल गई थी और चौधरी के खेत में जा पड़ी थी, अम्मॉँ इतना तेज दौड़ी कि में उन्हें न पा सका, सच।
आगे चले। हलवाइयों की दुकानें शुरू हुई। आज खूब सजी हुई थीं। इतनी मिठाइयॉँ कौन खाता? देखो न, एक-एक दूकान पर मनों होंगी। सुना है, रात को जिन्नात आकर खरीद ले जाते हैं। अब्बा कहते थें कि आधी रात को एक आदमी हर दूकान पर जाता है और जितना माल बचा होता है, वह तुलवा लेता है और सचमुच के रूपये देता है, बिल्कुल ऐसे ही रूपये।
हामिद को यकीन न आया—ऐसे रूपये जिन्नात को कहॉँ से मिल जाऍंगी?
मोहसिन ने कहा—जिन्नात को रूपये की क्या कमी? जिस खजाने में चाहें चले जाऍं। लोहे के दरवाजे तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाब, आप हैं किस फेर में! हीरे-जवाहरात तक उनके पास रहते हैं। जिससे खुश हो गए, उसे टोकरों जवाहरात दे दिए। अभी यहीं बैठे हें, पॉँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाऍं।
हामिद ने फिर पूछा—जिन्नात बहुत बड़े-बड़े होते हैं?
मोहसिन—एक-एक सिर आसमान के बराबर होता है जी! जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका सिर आसमान से जा लगे, मगर चाहे तो एक लोटे में घुस जाए।
हामिद—लोग उन्हें केसे खुश करते होंगे? कोई मुझे यह मंतर बता दे तो एक जिनन को खुश कर लूँ।
मोहसिन—अब यह तो न जानता, लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्नात हैं। कोई चीज चोरी जाए चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे ओर चोर का नाम बता देगें। जुमराती का बछवा उस दिन खो गया था। तीन दिन हैरान हुए, कहीं न मिला तब झख मारकर चौधरी के पास गए। चौधरी ने तुरन्त बता दिया, मवेशीखाने में है और वहीं मिला। जिन्नात आकर उन्हें सारे जहान की खबर दे जाते हैं।
अब उसकी समझ में आ गया कि चौधरी के पास क्यों इतना धन है और क्यों उनका इतना सम्मान है।
आगे चले। यह पुलिस लाइन है। यहीं सब कानिसटिबिल कवायद करते हैं। रैटन! फाय फो! रात को बेचारे घूम-घूमकर पहरा देते हैं, नहीं चोरियॉँ हो जाऍं। मोहसिन ने प्रतिवाद किया—यह कानिसटिबिल पहरा देते हें? तभी तुम बहुत जानते हों अजी हजरत, यह चोरी करते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हें, सब इनसे मुहल्ले में जाकर ‘जागते रहो! जाते रहो!’ पुकारते हें। तभी इन लोगों के पास इतने रूपये आते हें। मेरे मामू एक थाने में कानिसटिबिल हें। बरस रूपया महीना पाते हें, लेकिन पचास रूपये घर भेजते हें। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मामू, आप इतने रूपये कहॉँ से पाते हैं? हँसकर कहने लगे—बेटा, अल्लाह देता है। फिर आप ही बोले—हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मार लाऍं। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए।
हामिद ने पूछा—यह लोग चोरी करवाते हैं, तो कोई इन्हें पकड़ता नहीं?
मोहसिन उसकी नादानी पर दया दिखाकर बोला..अरे, पागल! इन्हें कौन पकड़ेगा! पकड़ने वाले तो यह लोग खुद हैं, लेकिन अल्लाह, इन्हें सजा भी खूब देता है। हराम का माल हराम में जाता है। थोड़े ही दिन हुए, मामू के घर में आग लग गई। सारी लेई-पूँजी जल गई। एक बरतन तक न बचा। कई दिन पेड़ के नीचे सोए, अल्ला कसम, पेड़ के नीचे! फिरन जाने कहॉँ से एक सौ कर्ज लाए तो बरतन-भॉँड़े आए।
हामिद—एक सौ तो पचार से ज्यादा होते है?
‘कहॉँ पचास, कहॉँ एक सौ। पचास एक थैली-भर होता है। सौ तो दो थैलियों में भी न आऍं?
अब बस्ती घनी होने लगी। ईइगाह जाने वालो की टोलियॉँ नजर आने लगी। एक से एक भड़कीले वस्त्र पहने हुए। कोई इक्के-तॉँगे पर सवार, कोई मोटर पर, सभी इत्र में बसे, सभी के दिलों में उमंग। ग्रामीणों का यह छोटा-सा दल अपनी विपन्नता से बेखबर, सन्तोष ओर धैर्य में मगन चला जा रहा था। बच्चों के लिए नगर की सभी चीजें अनोखी थीं। जिस चीज की ओर ताकते, ताकते ही रह जाते और पीछे से आर्न की आवाज होने पर भी न चेतते। हामिद तो मोटर के नीचे जाते-जाते बचा।
सहसा ईदगाह नजर आई। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया हे। नाचे पक्का फर्श है, जिस पर जाजम ढिछा हुआ है। और रोजेदारों की पंक्तियॉँ एक के पीछे एक न जाने कहॉँ वक चली गई हैं, पक्की जगत के नीचे तक, जहॉँ जाजम भी नहीं है। नए आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं हे। यहॉँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हें। इन ग्रामीणों ने भी वजू किया ओर पिछली पंक्ति में खड़े हो गए। कितना सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, कई बार यही क्रिया होती हे, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाऍं, और यही ग्रम चलता, रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाऍं, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए हैं।

2

नमाज खत्म हो गई। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तब मिठाई और खिलौने की दूकान पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में बालकों से कम उत्साही नहीं है। यह देखो, हिंडोला हें एक पैसा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होगें, कभी जमीन पर गिरते हुए। यह चर्खी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँट, छड़ो में लटके हुए हैं। एक पेसा देकर बैठ जाओं और पच्चीस चक्करों का मजा लो। महमूद और मोहसिन ओर नूरे ओर सम्मी इन घोड़ों ओर ऊँटो पर बैठते हें। हामिद दूर खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास हैं। अपने कोष का एक तिहाई जरा-सा चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता।
सब चर्खियों से उतरते हैं। अब खिलौने लेंगे। अधर दूकानों की कतार लगी हुई है। तरह-तरह के खिलौने हैं—सिपाही और गुजरिया, राज ओर वकी, भिश्ती और धोबिन और साधु। वह! कत्ते सुन्दर खिलोने हैं। अब बोला ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता हे, खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला, कंधें पर बंदूक रखे हुए, मालूम होता हे, अभी कवायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए हैं मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए है। कितना प्रसन्न है! शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी अड़ेला ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम हे। कैसी विद्वत्ता हे उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पौथा लिये हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे है। यह सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने महँगे खिलौन वह केसे ले? खिलौना कहीं हाथ से छूट पड़े तो चूर-चूर हो जाए। जरा पानी पड़े तो सारा रंग घुल जाए। ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा, किस काम के!
मोहसिन कहता है—मेरा भिश्ती रोज पानी दे जाएगा सॉँझ-सबेरे
महमूद—और मेरा सिपाही घर का पहरा देगा कोई चोर आएगा, तो फौरन बंदूक से फैर कर देगा।
नूरे—ओर मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा।
सम्मी—ओर मेरी धोबिन रोज कपड़े धोएगी।
हामिद खिलौनों की निंदा करता है—मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाऍं, लेकिन ललचाई हुई ऑंखों से खिलौनों को देख रहा है और चाहता है कि जरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हें, लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हें, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचता रह जाता है।
खिलौने के बाद मिठाइयाँ आती हैं। किसी ने रेवड़ियॉँ ली हें, किसी ने गुलाबजामुन किसी ने सोहन हलवा। मजे से खा रहे हैं। हामिद बिरादरी से पृथक् है। अभागे के पास तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता? ललचाई ऑंखों से सबक ओर देखता है।
मोहसिन कहता है—हामिद रेवड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है!
हामिद को सदेंह हुआ, ये केवल क्रूर विनोद हें मोहसिन इतना उदार नहीं है, लेकिन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है। मोहसिन दोने से एक रेवड़ी निकालकर हामिद की ओर बढ़ाता है। हामिद हाथ फैलाता है। मोहसिन रेवड़ी अपने मुँह में रख लेता है। महमूद नूरे ओर सम्मी खूब तालियॉँ बजा-बजाकर हँसते हैं। हामिद खिसिया जाता है।
मोहसिन—अच्छा, अबकी जरूर देंगे हामिद, अल्लाह कसम, ले जा।
हामिद—रखे रहो। क्या मेरे पास पैसे नहीं है?
सम्मी—तीन ही पेसे तो हैं। तीन पैसे में क्या-क्या लोगें?
महमूद—हमसे गुलाबजामुन ले जाओ हामिद। मोहमिन बदमाश है।
हामिद—मिठाई कौन बड़ी नेमत है। किताब में इसकी कितनी बुराइयॉँ लिखी हैं।
मोहसिन—लेकिन दिन मे कह रहे होगे कि मिले तो खा लें। अपने पैसे क्यों नहीं निकालते?
महमूद—इस समझते हें, इसकी चालाकी। जब हमारे सारे पैसे खर्च हो जाऍंगे, तो हमें ललचा-ललचाकर खाएगा।
मिठाइयों के बाद कुछ दूकानें लोहे की चीजों की, कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की। लड़कों के लिए यहॉँ कोई आकर्षण न था। वे सब आगे बढ़ जाते हैं, हामिद लोहे की दुकान पररूक जात हे। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तबे से रोटियॉँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितना प्रसन्न होगी! फिर उनकी ऊगलियॉँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा? व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई ऑंख उठाकर नहीं देखता। यह तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूट बराबर हो जाऍंगे। चिमटा कितने काम की चीज है। रोटियॉँ तवे से उतार लो, चूल्हें में सेंक लो। कोई आग मॉँगने आये तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। अम्मॉँ बेचारी को कहॉँ फुरसत हे कि बाजार आऍं और इतने पैसे ही कहॉँ मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती हैं।
हामिद के साथी आगे बढ़ गए हैं। सबील पर सबके सब शर्बत पी रहे हैं। देखो, सब कतने लालची हैं। इतनी मिठाइयॉँ लीं, मुझे किसी ने एक भी न दी। उस पर कहते है, मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करों। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूँगा। खाऍं मिठाइयॉँ, आप मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुन्सियॉं निकलेंगी, आप ही जबान चटोरी हो जाएगी। तब घर से पैसे चुराऍंगे और मार खाऍंगे। किताब में झूठी बातें थोड़े ही लिखी हें। मेरी जबान क्यों खराब होगी? अम्मॉँ चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी—मेरा बच्चा अम्मॉँ के लिए चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआऍं देगा? बड़ों का दुआऍं सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं, और तुरंत सुनी जाती हैं। में भी इनसे मिजाज क्यों सहूँ? मैं गरीब सही, किसी से कुछ मॉँगने तो नहीं जाते। आखिर अब्बाजान कभीं न कभी आऍंगे। अम्मा भी ऑंएगी ही। फिर इन लोगों से पूछूँगा, कितने खिलौने लोगे? एक-एक को टोकरियों खिलौने दूँ और दिखा हूँ कि दोस्तों के साथ इस तरह का सलूक किया जात है। यह नहीं कि एक पैसे की रेवड़ियॉँ लीं, तो चिढ़ा-चिढ़ाकर खाने लगे। सबके सब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हंसें! मेरी बला से! उसने दुकानदार से पूछा—यह चिमटा कितने का है?
दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा—तुम्हारे काम का नहीं है जी!
‘बिकाऊ है कि नहीं?’
‘बिकाऊ क्यों नहीं है? और यहॉँ क्यों लाद लाए हैं?’
तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है?’
‘छ: पैसे लगेंगे।‘
हामिद का दिल बैठ गया।
‘ठीक-ठीक पॉँच पेसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।‘
हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा तीन पैसे लोगे?
यह कहता हुआ व आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियॉँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़कियॉँ नहीं दी। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानों बंदूक है और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया। जरा सुनें, सबके सब क्या-क्या आलोचनाऍं करते हैं!
मोहसिन ने हँसकर कहा—यह चिमटा क्यों लाया पगले, इसे क्या करेगा?
हामिद ने चिमटे को जमीन पर पटकर कहा—जरा अपना भिश्ती जमीन पर गिरा दो। सारी पसलियॉँ चूर-चूर हो जाऍं बचा की।
महमूद बोला—तो यह चिमटा कोई खिलौना है?
हामिद—खिलौना क्यों नही है! अभी कन्धे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे काकाम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाऍं, मेरे चिमटे का बाल भी बॉंका नही कर सकतें मेरा बहादुर शेर है चिमटा।
सम्मी ने खँजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला—मेरी खँजरी से बदलोगे? दो आने की है।
हामिद ने खँजरी की ओर उपेक्षा से देखा-मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खॅजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। जरा-सा पानी लग जाए तो खत्म हो जाए। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, ऑंधी में, तूफान में बराबर डटा खड़ा रहेगा।
चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, अब पैसे किसके पास धरे हैं? फिर मेले से दूर निकल आए हें, नौ कब के बज गए, धूप तेज हो रही है। घर पहुंचने की जल्दी हो रही हे। बाप से जिद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता। हामिद है बड़ा चालाक। इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।
अब बालकों के दो दल हो गए हैं। मोहसिन, महमद, सम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला दूसरी तरफ। शास्त्रर्थ हो रहा है। सम्मी तो विधर्मी हा गया! दूसरे पक्ष से जा मिला, लेकिन मोहनि, महमूद और नूरे भी हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद के आघातों से आतंकित हो उठे हैं। उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाए मियॉँ भिश्ती के छक्के छूट जाऍं, जो मियॉँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागे, वकील साहब की नानी मर जाए, चोगे में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जाऍं। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी ऑंखे निकाल लेगा।
मोहसिन ने एड़ी—चोटी का जारे लगाकर कहा—अच्छा, पानी तो नहीं भर सकता?
हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा—भिश्ती को एक डांट बताएगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर उसके द्वार पर छिड़कने लगेगा।
मोहसिन परास्त हो गया, पर महमूद ने कुमुक पहुँचाई—अगर बचा पकड़ जाऍं तो अदालम में बॅधे-बँधे फिरेंगे। तब तो वकील साहब के पैरों पड़ेगे।
हामिद इस प्रबल तर्क का जवाब न दे सका। उसने पूछा—हमें पकड़ने कौने आएगा?
नूरे ने अकड़कर कहा—यह सिपाही बंदूकवाला।
हामिद ने मुँह चिढ़ाकर कहा—यह बेचारे हम बहादुर रूस्तमे—हिंद को पकड़ेगें! अच्छा लाओ, अभी जरा कुश्ती हो जाए। इसकी सूरत देखकर दूर से भागेंगे। पकड़ेगें क्या बेचारे!
मोहसिन को एक नई चोट सूझ गई—तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज आग में जलेगा।
उसने समझा था कि हामिद लाजवाब हो जाएगा, लेकिन यह बात न हुई। हामिद ने तुरंत जवाब दिया—आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भिश्ती लैडियों की तरह घर में घुस जाऍंगे। आग में वह काम है, जो यह रूस्तमे-हिन्द ही कर सकता है।
महमूद ने एक जोर लगाया—वकील साहब कुरसी—मेज पर बैठेगे, तुम्हारा चिमटा तो बाबरचीखाने में जमीन पर पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?
इस तर्क ने सम्मी औरनूरे को भी सजी कर दिया! कितने ठिकाने की बात कही हे पट्ठे ने! चिमटा बावरचीखाने में पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?
हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा, तो उसने धॉँधली शुरू की—मेरा चिमटा बावरचीखाने में नही रहेगा। वकील साहब कुर्सी पर बैठेगें, तो जाकर उन्हे जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा।
बात कुछ बनी नही। खाल गाली-गलौज थी, लेकिन कानून को पेट में डालनेवाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए मानो कोई धेलचा कानकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज हे। उसको पेट के अन्दर डाल दिया जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती हे। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रूस्तमे-हिन्द हे। अब इसमें मोहसिन, महमूद नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती।
विजेता को हारनेवालों से जो सत्कार मिलना स्वाभविक है, वह हामिद को भी मिल। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जाऍंगी। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरसों?
संधि की शर्ते तय होने लगीं। मोहसिन ने कहा—जरा अपना चिमटा दो, हम भी देखें। तुम हमार भिश्ती लेकर देखो।
महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किए।
हामिद को इन शर्तो को मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया, और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आए। कितने खूबसूरत खिलौने हैं।
हामिद ने हारने वालों के ऑंसू पोंछे—मैं तुम्हे चिढ़ा रहा था, सच! यह चिमटा भला, इन खिलौनों की क्या बराबर करेगा, मालूम होता है, अब बोले, अब बोले।
लेकिन मोहसनि की पार्टी को इस दिलासे से संतोष नहीं होता। चिमटे का सिल्का खूब बैठ गया है। चिपका हुआ टिकट अब पानी से नहीं छूट रहा है।
मोहसिन—लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा?
महमूद—दुआ को लिय फिरते हो। उल्टे मार न पड़े। अम्मां जरूर कहेंगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने मिले?
हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की मां इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों ही में तो उसे सब-कुछ करना था ओर उन पैसों के इस उपयों पर पछतावे की बिल्कुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रूस्तमें—हिन्द हे ओर सभी खिलौनों का बादशाह।
रास्ते में महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को दियें। महमून ने केवल हामिद को साझी बनाया। उसके अन्य मित्र मुंह ताकते रह गए। यह उस चिमटे का प्रसाद थां।

3

ग्यारह बजे गॉँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मोहसिन की छोटी बहन दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जा उछली, तो मियॉं भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दानों खुब रोए। उसकी अम्मॉँ यह शोर सुनकर बिगड़ी और दोनों को ऊपर से दो-दो चॉँटे और लगाए।
मियॉँ नूरे के वकील का अंत उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ। वकील जमीन पर या ताक पर हो नहीं बैठ सकता। उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में खूँटियाँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरे पर कागज का कालीन बिदाया गया। वकील साहब राजा भोज की भाँति सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। आदालतों में खर की टट्टियॉँ और बिजली के पंखे रहते हें। क्या यहॉँ मामूली पंखा भी न हो! कानून की गर्मी दिमाग पर चढ़ जाएगी कि नहीं? बॉँस कापंखा आया ओर नूरे हवा करने लगें मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया! फिर बड़े जोर-शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गई।
अब रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गॉँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया, लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चलें वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाए गए जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरह ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हें। मगर रात तो अँधेरी होनी चाहिए, नूरे को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियॉँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये जमीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टॉँग में विकार आ जाता है।
महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिला गया है जिससे वह टूटी टॉँग को आनन-फानन जोड़ सकता हे। केवल गूलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जावब दे देती है। शल्य-क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है। एक टॉँग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह सिपाही संन्यासी हो गया है। अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा देता है। कभी-कभी देवता भी बन जाता है। उसके सिर का झालरदार साफा खुरच दिया गया है। अब उसका जितना रूपांतर चाहों, कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है।
अब मियॉँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी।
‘यह चिमटा कहॉं था?’
‘मैंने मोल लिया है।‘
‘कै पैसे में?
‘तीन पैसे दिये।‘
अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा! ‘सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?’
हामिद ने अपराधी-भाव से कहा—तुम्हारी उँगलियॉँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया।
बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता हे और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना व्याग, कितना सदभाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहॉँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।
और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद कें इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआऍं देती जाती थी और आँसूं की बड़ी-बड़ी बूंदे गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता!

दोहा संग्रह - संत कबीर के दोहे

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥

पंचतंत्र कथा संग्रह - सत्य की जीत

दो मित्र धर्मबुद्धि और कुबुद्धि हिम्मत नगर में रहते थे। एक बार कुबुद्धि के मन में एक विचार आया :- क्यों न मैं मित्र धर्मबुद्धि के साथ दूसरे देश जाकर धनोपार्जन कर्रूँ। बाद में किसी न किसी युक्ति से उसे ठग कर सारा धन हड़प कर सुख- चैन से पूरी जिंदगी जीउँ।

इसी नियति से कुबुद्धि ने धर्मबुद्धि को धन और ज्ञान प्राप्त होने का लोभ देते हुए अपने साथ बाहर जाने के लिए राजी कर लिया।

शुभ- मुहूर्त देखकर दोनों मित्र एक अन्य शहर के लिए प्रस्थान किये। जाते समय अपने साथ कई सामान लेकर गये तथा मुँहमाँगे दामों पर बेचकर खूब धनोपार्जन किया। अंततः प्रसन्न मन से गाँव की तरफ लौट गये।

गाँव के निकट पहुँचने पर कुबुद्धि से धर्मबुद्धि को समझाते हुए कहा-- मेरे विचार से गाँव में एक साथ सारा धन ले जाना उचित नहीं है। कुछ लोगों को हमसे ईष्या होने लगेगी, तो कुछ लोग कर्ज के रुप में पैसा माँगने लगेंगे। संभव है कि कोई चोर ही इसे चुरा ले। उसने राय देते हुए कहा, मेरे विचार से कुछ धन हमें जंगल में ही किसी सुरक्षित स्थान पर गाढ़ देनी चाहिए। अन्यथा सारा धन देखकर सन्यासी व महात्माओं का मन भी डोल जाता है। सीधे- सीधे धर्मबुद्धि ने पुनः कुबुद्धि के विचार में अपनी सहमति जताई।

वहीं किसी सुरक्षित स्थान पर दोनों ने गड्ढ़े खोदकर अपना धन दबा दिया तथा घर की ओर प्रस्थान कर गये। बाद में मौका देखकर एक रात कुबुद्धि ने वहाँ गड़े सारे धन को चुपके से निकालकर हथिया लिया।

कुछ दिनों के बाद धर्मबुद्धि ने कुबुद्धि से कहा-- मुझे कुछ धन की आवश्यकता है। अतः आप मेरे साथ चलिए। कुबुद्धि तैयार हो गया।

जब उसने धन निकालने के लिए गड्ढ़े खोदे, तो वहाँ कुछ भी नहीं मिला। कुबुद्धि ने तुरंत रोने- चिल्लाने का अभिनय किया। उसने धर्मबुद्धि पर धन निकाल लेने का इल्जाम लगा दिया। दोनों लड़ने- झगड़ते न्यायाधीश के पास पहुँचे।

न्यायाधीश के सम्मुख दोनों ने अपना- अपना पक्ष प्रस्तुत किया। न्यायाधीश ने सत्य का पता लगाने के लिए दिव्य- परीक्षा का आदेश दिया।

बागीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे - मिर्ज़ा ग़ालिब

शायर - मिर्ज़ा ग़ालिब

बागीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे


होता है निहां गर्द में सेहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे


मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे ?
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे


फिर देखिये अंदाज़-ए-गुल अफ्शानी-ए-गुफ्तार
रख दे कोइ पैमाना-ओ-सहबा मेरे आगे


इमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे


गो हाँथ को जुम्बिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे

कहानी - अक्टूबर और जून (लेखक - ओ हेनरी)

अनुवाद - मेघना पाण्डेय
कप्तान ने दिवार पर टंगी अपनी तलवार को उदासी से देखा। समीप की ही अलमारी में मौसम की मार और सेवा के कारण घिसी हुयी उसकी दाग धब्बेदार वर्दी टंगी थी। कितना लम्बा समय बीत गया प्रतीत होता था, जब उन पुराने दिनों में युद्ध कि चेतावनी हुआ करती थी।
और अब जब वह अपने देश के संघर्ष के समय से निवृत हो चूका था,एक औरत कि कोमल आंखों और मुस्कुराते होंठों के प्रति समर्पित होकर, सिमटकर रह गया था। वह अपने शांत कमरे में बैठा था और उसके हाँथ में वह पत्र लगा था जो अभी अभी उसे प्राप्त हुआ था। पत्र जिसने उसे उदास दिया था । उसने उन आघात पंक्तियों को पुनः पढा , जिसने उसकी आशा नष्ट कर दी थी ।
"तुमने मेरा सम्मान यह पूछ कर काम कर दीया है कि में तुम्हारी पत्नी बनना चाहूंगी । मुझे लगता है के मुझे स्पष्ट कहना चाहिऐ । ऐसा करने का कारण यह है कि हमारी आयु में एक बड़ा अंतर है । में तुम्हें बहुत , बहुत पसंद करती हूँ , पर मेरा विश्वाश है कि हमारा विवाह सफल नहीं होगा मुझे खेद है में इस प्रकार कह रहीं हूँ , पर मेरा विश्वाश है कि तुम मेरी कारण कि इमानदारी की प्रशंशा करोगे । "
कप्तान ने आह भरी और अपने हाथों में अपना सिर थाम लिया। हाँ उनकी आयु के मध्य कई वर्ष थे । पर वह बलिष्ठ था, उसकी प्रतिष्ठा थी और उसके पास दौलत थी । क्या उसका प्रेम, उसकी कोमल देखभाल और उसे उसके द्वारा होने वाले लाभ, उसे आयु का प्रश्न नहीं भुला सकते थे? इसके अतिरिक्त, वह निश्चिंत था की वह भी उसकी परवाह करती है ।
कप्तान तत्काल निर्णय लेने वाला व्यक्ति था । वह युद्ध क्षेत्र में अपने निर्णय और उर्जा के लिए जाना जाता था । वह उसे मिलेगा और उससे व्यक्तिगत रूप से अनुरोध करेगा । आयु ! - उसके और वह जिसे प्रेम करता था, दोनों के मध्य में आने का क्या मतलब था ?
दो घंटे में वह अपने महानतम युद्ध के लिए तैयार हो गया । उसने पुरानी दक्षिणी कसबे टेनिसी के लिए ट्रेन पकडी जहाँ वह रहती थी ।
थियोडोरा डैमिंग एक पुरानी इमारत के सुन्दर बरामदे में कड़ी संध्या-प्रकाश का आनंद ले रही थीं कि तभी कप्तान ने द्वार में प्रवेश किया और पत्थर के मार्ग पर चलता हुआ आया ।
वह उससे उलझनरहित मुस्कराहट के साथ मिली । जब कप्तान उससे निचली एक सीढ़ी पर खडा था उनकी आयु में इतना अंतर नहीं मालूम हुआ । वह लम्बा, सीधा, साफ-सुथरे नेत्रों वाला और भूरी रंगत का था । वह अपने पल्लवित स्त्रीत्व में थी ।
"मुझे तुम्हारे आने कि आशा नहीं थी" थियोडोरा ने कहा , "पर जब तुम आ ही गए हो टू सीढ़ी पर बैठ सकते हो । क्या तुम्हे मेरा पत्र नहीं मिला ?"
"मिला" कप्तान ने कहा , "और इसी लिए मैं आया हूँ । मैं कहता हूँ थीयो कि अपने उत्तर पर पुनः विचार करो, नहीं करोगी क्या?"
थियोडोरा कोमलता से उसकी ओर मुस्कुरायी । वह वास्तव में उसकी शक्ति, उसके कुल हाव भाव, उसके पुरुसत्वा इत्यादी से प्यार करती थी - संभवतः यदि -
"नहीं , नहीं , " सकारात्मक रूप से वह अपना सिर हिलाते हुए बोली , " प्रश्न ही नहीं है । मैं तुम्हे पूरी तरह पसंद करती हूँ पर तुमसे विवाह करना, नही चल पायेगा। तुम्हारी और मेरी आयु - मुझसे पुनः मत कहलवाओ - मैंने तुम्हे अपने पत्र में बताया था । "
कप्तान के ताम्बयी चेहरे पर हलकी लालिमा छा गयी । वह एक क्षण को मौन था और संध्या प्रकाश में उदासी के साथ घूर रहा था । जंगल के पार वह देख रहा था कि एक मैदान में नीले वस्त्र पहने लड़के, समुद्र की ओर कदम-ताल करते हुए बढ़ रहे थे । ओह ! यह कितना समय पूर्व प्रतीत होता था । वास्तव में भाग्य और पितामह समय ने उसे पीड़ा पहुचाई थी । उसके और प्रसन्नता के मध्य कुछ ही वर्ष अड़े हुए थे ।
थियोडोरा का हाथ रेंग कर कप्तान के भूरे , दृढ हाथ की पकड़ में थाम गया । वह कम से कम , इस अनुभव , जो प्रेम की भवना के समान है , वह महसूस कर रही थी।
"कृपया , इतना बुरा मत मानो , " वह शिष्टता से बोली । "यह सब भलाई के लिए है । मीने स्वयं इसका कारण बुद्धिमानी से निकाला है । किसी दिन तुम प्रसन्न होगे कि मैंने तुमसे विवाह नहीं किया। यह थोडे समय के लिए बहुत अछा और प्रेमपूर्वक लगेगा - पर जरा सोचो ! थोडे ही वर्षों में इसका स्वाद कितना भिन्न होगा। हममे से एक शाम के समय आग के पास बैठ कर पढ़ना चाहेगा और हो सकता है कि गठिया इत्यादी के उपचार कर रहो होगा जब कि दूसरा नृत्य थिएटर और देर रात्रि के भोज के प्रति पागल हो रहा होगा । नहीं , मेरे प्रिय मित्र ! यह जनवरी और मई नहीं बल्कि अक्टूबर और जून का वास्तविक मामला है !"
"मैं सदैव वही करूंगा थियो जैसा तुम चाहोगी तुम - "
"नहीं, तुम नहीं करोगे। तुम अभी सोचते हो कि तुम करोगे , पर तुम नही करोगे । कृपया , मुझसे अधिक न पूछो । "
कप्तान अपना युद्ध हार गया था। पर वह एक वीर योद्धा था और जब वह अपनी अन्तिम विदा कहने के लिए उठा , उसका मुह व्यवस्तित था और कंधे चौड़े।
उस रात्रि उसने उत्तर दिशा कि ट्रेन पकड़ी । अगली शाम वह अपने कमरे में वापिस था , जहाँ दीवार पर उसकी तलवर लटक रही थी। वह भोजन के लिए तैयार हो रहा था और अपनी सफ़ेद टाई सावधानी से बाँध रह था और उसी समय वह स्वय से बातें भी करता जा रहा था ।
"मेरे विचार में, अंततः , थियो ठीक ही कहती थी। कोई माना नही कर सकता था कि उसकी आकृति बहुत सुन्दर है किन्तु उदारता से गाड़ना की जाये तो वह भी अट्ठाईस वर्षीया होनी चाहिये ।"
क्योंकि आप देखे, कप्तान मात्र उन्नीस वर्ष का था और उसकी तलवार चैटानूगा के परेड स्थल के अतिरिक्त कभी नहीं खीची गयी थी । और यह लगभग ऐसा ही था जैसे वह स्पेन-अमेरिका युद्ध में कभी गया न हो ।

Thursday, April 3, 2008

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