Monday, May 3, 2010

चराग़-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसींन रात थी . Charag-o-aftab gum Badi Haasin Raat thi

जगजीत सिंह द्वारा गाई एक ग़ज़ल सुन रहा था , सोचा SHARE करते है .


चराग़-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसींन रात थी . 
श़बाब की नक़ाब गुम, बड़ी हसींन रात थी . 

मुझे पिला रहे थे वो की खुद ही शम्मा बुझ गयी 
गिलास गुम, शराब गुम , बड़ी हसींन रात थी .  

लिखा था जिस किताब में कि इश्क तो हराम है.
हुयी वोही किताब गुम , बड़ी हसींन रात थी .

लबो से लब जो मिल गए , लबो से लब ही सिल गए .
सवाल गुम , जबाब गुम , बड़ी हसींन रात थी .


शायर - सुदर्शन फ़ाकिर
Related Posts with Thumbnails