जगजीत सिंह द्वारा गाई एक ग़ज़ल सुन रहा था , सोचा SHARE करते है .
चराग़-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसींन रात थी .
श़बाब की नक़ाब गुम, बड़ी हसींन रात थी .
मुझे पिला रहे थे वो की खुद ही शम्मा बुझ गयी
गिलास गुम, शराब गुम , बड़ी हसींन रात थी .
लिखा था जिस किताब में कि इश्क तो हराम है.
हुयी वोही किताब गुम , बड़ी हसींन रात थी .
लबो से लब जो मिल गए , लबो से लब ही सिल गए .
सवाल गुम , जबाब गुम , बड़ी हसींन रात थी .
शायर - सुदर्शन फ़ाकिर
Monday, May 3, 2010
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