Sunday, April 6, 2008

कहानी - अक्टूबर और जून (लेखक - ओ हेनरी)

अनुवाद - मेघना पाण्डेय
कप्तान ने दिवार पर टंगी अपनी तलवार को उदासी से देखा। समीप की ही अलमारी में मौसम की मार और सेवा के कारण घिसी हुयी उसकी दाग धब्बेदार वर्दी टंगी थी। कितना लम्बा समय बीत गया प्रतीत होता था, जब उन पुराने दिनों में युद्ध कि चेतावनी हुआ करती थी।
और अब जब वह अपने देश के संघर्ष के समय से निवृत हो चूका था,एक औरत कि कोमल आंखों और मुस्कुराते होंठों के प्रति समर्पित होकर, सिमटकर रह गया था। वह अपने शांत कमरे में बैठा था और उसके हाँथ में वह पत्र लगा था जो अभी अभी उसे प्राप्त हुआ था। पत्र जिसने उसे उदास दिया था । उसने उन आघात पंक्तियों को पुनः पढा , जिसने उसकी आशा नष्ट कर दी थी ।
"तुमने मेरा सम्मान यह पूछ कर काम कर दीया है कि में तुम्हारी पत्नी बनना चाहूंगी । मुझे लगता है के मुझे स्पष्ट कहना चाहिऐ । ऐसा करने का कारण यह है कि हमारी आयु में एक बड़ा अंतर है । में तुम्हें बहुत , बहुत पसंद करती हूँ , पर मेरा विश्वाश है कि हमारा विवाह सफल नहीं होगा मुझे खेद है में इस प्रकार कह रहीं हूँ , पर मेरा विश्वाश है कि तुम मेरी कारण कि इमानदारी की प्रशंशा करोगे । "
कप्तान ने आह भरी और अपने हाथों में अपना सिर थाम लिया। हाँ उनकी आयु के मध्य कई वर्ष थे । पर वह बलिष्ठ था, उसकी प्रतिष्ठा थी और उसके पास दौलत थी । क्या उसका प्रेम, उसकी कोमल देखभाल और उसे उसके द्वारा होने वाले लाभ, उसे आयु का प्रश्न नहीं भुला सकते थे? इसके अतिरिक्त, वह निश्चिंत था की वह भी उसकी परवाह करती है ।
कप्तान तत्काल निर्णय लेने वाला व्यक्ति था । वह युद्ध क्षेत्र में अपने निर्णय और उर्जा के लिए जाना जाता था । वह उसे मिलेगा और उससे व्यक्तिगत रूप से अनुरोध करेगा । आयु ! - उसके और वह जिसे प्रेम करता था, दोनों के मध्य में आने का क्या मतलब था ?
दो घंटे में वह अपने महानतम युद्ध के लिए तैयार हो गया । उसने पुरानी दक्षिणी कसबे टेनिसी के लिए ट्रेन पकडी जहाँ वह रहती थी ।
थियोडोरा डैमिंग एक पुरानी इमारत के सुन्दर बरामदे में कड़ी संध्या-प्रकाश का आनंद ले रही थीं कि तभी कप्तान ने द्वार में प्रवेश किया और पत्थर के मार्ग पर चलता हुआ आया ।
वह उससे उलझनरहित मुस्कराहट के साथ मिली । जब कप्तान उससे निचली एक सीढ़ी पर खडा था उनकी आयु में इतना अंतर नहीं मालूम हुआ । वह लम्बा, सीधा, साफ-सुथरे नेत्रों वाला और भूरी रंगत का था । वह अपने पल्लवित स्त्रीत्व में थी ।
"मुझे तुम्हारे आने कि आशा नहीं थी" थियोडोरा ने कहा , "पर जब तुम आ ही गए हो टू सीढ़ी पर बैठ सकते हो । क्या तुम्हे मेरा पत्र नहीं मिला ?"
"मिला" कप्तान ने कहा , "और इसी लिए मैं आया हूँ । मैं कहता हूँ थीयो कि अपने उत्तर पर पुनः विचार करो, नहीं करोगी क्या?"
थियोडोरा कोमलता से उसकी ओर मुस्कुरायी । वह वास्तव में उसकी शक्ति, उसके कुल हाव भाव, उसके पुरुसत्वा इत्यादी से प्यार करती थी - संभवतः यदि -
"नहीं , नहीं , " सकारात्मक रूप से वह अपना सिर हिलाते हुए बोली , " प्रश्न ही नहीं है । मैं तुम्हे पूरी तरह पसंद करती हूँ पर तुमसे विवाह करना, नही चल पायेगा। तुम्हारी और मेरी आयु - मुझसे पुनः मत कहलवाओ - मैंने तुम्हे अपने पत्र में बताया था । "
कप्तान के ताम्बयी चेहरे पर हलकी लालिमा छा गयी । वह एक क्षण को मौन था और संध्या प्रकाश में उदासी के साथ घूर रहा था । जंगल के पार वह देख रहा था कि एक मैदान में नीले वस्त्र पहने लड़के, समुद्र की ओर कदम-ताल करते हुए बढ़ रहे थे । ओह ! यह कितना समय पूर्व प्रतीत होता था । वास्तव में भाग्य और पितामह समय ने उसे पीड़ा पहुचाई थी । उसके और प्रसन्नता के मध्य कुछ ही वर्ष अड़े हुए थे ।
थियोडोरा का हाथ रेंग कर कप्तान के भूरे , दृढ हाथ की पकड़ में थाम गया । वह कम से कम , इस अनुभव , जो प्रेम की भवना के समान है , वह महसूस कर रही थी।
"कृपया , इतना बुरा मत मानो , " वह शिष्टता से बोली । "यह सब भलाई के लिए है । मीने स्वयं इसका कारण बुद्धिमानी से निकाला है । किसी दिन तुम प्रसन्न होगे कि मैंने तुमसे विवाह नहीं किया। यह थोडे समय के लिए बहुत अछा और प्रेमपूर्वक लगेगा - पर जरा सोचो ! थोडे ही वर्षों में इसका स्वाद कितना भिन्न होगा। हममे से एक शाम के समय आग के पास बैठ कर पढ़ना चाहेगा और हो सकता है कि गठिया इत्यादी के उपचार कर रहो होगा जब कि दूसरा नृत्य थिएटर और देर रात्रि के भोज के प्रति पागल हो रहा होगा । नहीं , मेरे प्रिय मित्र ! यह जनवरी और मई नहीं बल्कि अक्टूबर और जून का वास्तविक मामला है !"
"मैं सदैव वही करूंगा थियो जैसा तुम चाहोगी तुम - "
"नहीं, तुम नहीं करोगे। तुम अभी सोचते हो कि तुम करोगे , पर तुम नही करोगे । कृपया , मुझसे अधिक न पूछो । "
कप्तान अपना युद्ध हार गया था। पर वह एक वीर योद्धा था और जब वह अपनी अन्तिम विदा कहने के लिए उठा , उसका मुह व्यवस्तित था और कंधे चौड़े।
उस रात्रि उसने उत्तर दिशा कि ट्रेन पकड़ी । अगली शाम वह अपने कमरे में वापिस था , जहाँ दीवार पर उसकी तलवर लटक रही थी। वह भोजन के लिए तैयार हो रहा था और अपनी सफ़ेद टाई सावधानी से बाँध रह था और उसी समय वह स्वय से बातें भी करता जा रहा था ।
"मेरे विचार में, अंततः , थियो ठीक ही कहती थी। कोई माना नही कर सकता था कि उसकी आकृति बहुत सुन्दर है किन्तु उदारता से गाड़ना की जाये तो वह भी अट्ठाईस वर्षीया होनी चाहिये ।"
क्योंकि आप देखे, कप्तान मात्र उन्नीस वर्ष का था और उसकी तलवार चैटानूगा के परेड स्थल के अतिरिक्त कभी नहीं खीची गयी थी । और यह लगभग ऐसा ही था जैसे वह स्पेन-अमेरिका युद्ध में कभी गया न हो ।

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