Sunday, April 6, 2008

बागीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे - मिर्ज़ा ग़ालिब

शायर - मिर्ज़ा ग़ालिब

बागीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे


होता है निहां गर्द में सेहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे


मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे ?
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे


फिर देखिये अंदाज़-ए-गुल अफ्शानी-ए-गुफ्तार
रख दे कोइ पैमाना-ओ-सहबा मेरे आगे


इमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे


गो हाँथ को जुम्बिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे

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