महान सन्त ओशो ने यूं ही कुछ समझाने में, कुछ हँसाने में, किस्से कहे और वह बन गए मोती । पर यह चुटकुले नहीं है, यह काफी गहरे हैं , इनको समझने कि कोशिश करे , हँसी के साथ साथ आनंद आएगा ।
गिरहें -- एक पागलखाने में तीन आदमी बंद थे - एक ही कोठारी में; क्योकि एक ही साथ पागल हुए थे और तीनो पुराने साथी भी थे । एक दूसरे को रंग दिया होगा । एक मनोचिकित्सक उनका अध्ययन करने आया था । उसने पागलखाने के डॉक्टर से पूछा कि इसमे नम्बर एक को क्या तकलीफ है ? उसने कहा, यह नम्बर एक , एक रस्सी में लगी गाँठ खोलने का उपाय कर रहा था और खोल नहीं पाया - उसी से पागल हुआ ।
और यह दूसरा क्या कर रहा था ?
वह भी गाँठ खोल रहा था रस्सी में लगी और खोलने में सफल हो गया ,और इसलिए पागल हो गया ।
वह मनोचिकित्सक थोड़ा हैरान हुआ । उसने कहा , और यह तीसरे सज्जन ?
उसने कहा , यह वह सज्जन हैं ,जिन्होंने गाँठ लगाई थी ।
Thursday, April 10, 2008
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